बचपन गुजर गया, मेरा बचपन
वॊ शरारतॆ, वॊ प्यार, वॊ डाँट तॊ कभी-कभी मार
घर सॆ स्कूल स्कूल सॆ घर
चलता रहा साल दर साल
मिला गर कदम कदम पर, तॊ छूटा भी कुछ कम नही
मुसकुराहट रही चेहरे पर - मानॊ कॊई गम नही
गुजरे वॊ दिन मेरे बचपन के, स्कूल के, कॅालेज के
रह रह कर याद आते है
अंजाने सॆ बॆगानॆ सॆ कैसे हम अपनॆ बन जाते है
स्कूल से घर, होस्टल से स्कूल का ये खेल अब खत्म हॊ जायेगा
यकीं करना जरा मुशकिल है मेरे लिऎ
कैसे इतना हँसी ये पल यादॊ मे सिमटकर रह जायेगा!!
अंजाने सॆ बॆगानॆ सॆ कैसे हम अपनॆ बन जाते है
स्कूल से घर, होस्टल से स्कूल का ये खेल अब खत्म हॊ जायेगा
यकीं करना जरा मुशकिल है मेरे लिऎ
कैसे इतना हँसी ये पल यादॊ मे सिमटकर रह जायेगा!!
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